देश के नामी कॉरपोरेट मीडिया घरानों के भोपाल प्रतिनिधियों की हालत का खुलासा देश के ही एक नामी अखबार द हिंदू ने किया है। अखबार ने अपने सूत्रों के हवाले से जो खबर 9 जनवरी 2012 को प्रकाशित की, वह वाकई हिम्मत की बात है। खबर में बताया गया है कि मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में रह रहे 187 वरिष्ठ पत्रकारों ने सरकारी बंगलों पर अवैध रूप से कब्जा जमा रखा है। इनमें से कई पत्रकार तो ऐसे भी हैं, जो वर्षों पहले अपने संस्थान से रिटायर हो चुके हैं पर बंगला मोह अभी तक नहीं त्यागा है।
ऐसे पत्रकारों की वजह से राज्य सरकार को करोड़ों रुपए के किराये का नुकसान हो रहा है। यही बंगले यदि सरकार अपने कर्मचारियों और अधिकारियों को आवंटित करती तो बदले में उनसे मकान का किराया भी लिया जाता, लेकिन पत्रकार बंधु ने तो किराया देते हैं और न ही घर खाली करते हैं। खबर में एक सूत्र के हवाले से बताया गया है कि ऐसे घरों पर लगभग १६ करोड़ रुपए किराया बकाया है।
खास बात यह है कि इन घरों में रहने वाले बड़े पत्रकारों का वेतन और पद दोनों ही बड़ा है। द हिंदू के मुताबिक सरकारी घरों में कब्जा किए हुए पत्रकार लोग पीटीआई, यूएनआई, स्टार न्यूज, जी न्यूज, ईटीवी, इंडियन एक्सप्रेस (पूर्व पत्रकार), हिंदुस्तान टाइम्स, द स्टेट्समैन, हितवाद, इंडिया टीवी, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता, नईदुनिया, स्वदेश, लोकमत, देशबंधु, नवभारत टाइम्स, इकोनोमिक टाइम्स जैसे शीर्ष संस्थानों में कार्यरत हैं। इनके अलावा छुटभैया किस्म के अखबार, मैगजीन और पोर्टल चलाने वालों ने भी सरकारी घरों पर कब्जा कर रखा है।
मध्यप्रदेश सरकार यह कारनामा आज से नहीं लगभग 20 वर्ष से कर रही है। यह हालात तब हैं, जबकि 2006 में ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी घर पत्रकारों को न आवंटित करने के आदेश दे दिए थे। राज्य सरकार के कर्मचारियों को रहने के लिए घर नहीं मिल रहे हैं। 20-20 साल की वेटिंग चल रही है। कई अधिकारी/कर्मचारी को तो घर की आस लिए हुए ही रिटायर हो गए। कुछ ने हिम्मत करके जैसे-तैसे अपने घर बना लिए या फिर किराये के मकान में ही जिंदगी काट दी। ऐसे हालातों के बीच शहर के पॉश इलाकों अरेरा कॉलोनी, चार इमली, शिवाजी नगर, 45 बंगले और 74 बंगले के घरों पर पत्रकार भाईयों का कब्जा है।
सभी जानते हैं कि राज्य सरकारें पत्रकारों और मीडिया हाउसेस को मैनेज करने के लिए घर, जमीन आवंटित करने जैसे कृत्य करती रहती हैं। एक सच यह भी है कि सरकारी घर का मजा उन्हीं पत्रकारों को मिलता है, जो प्रभावशाली होते हैं और सत्ता के गलियारों में जिनकी पूछ होती है या फिर वो देश के बड़े मीडिया संस्थान के राज्य प्रतिनिधि हों।
इसी तरह से जमीनों के बंदरबाट की एक खबर हिंदू अखबार ने अक्टूबर 2009 में भी प्रकाशित की थी। अगर आपको ऐसे पत्रकारों के नामों की फेहरिस्त देखना हो तो मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्कविभाग की वेबसाइट एमपीइंफो डॉट ओआरजी पर उपलब्ध है।
ऐसे पत्रकारों की वजह से राज्य सरकार को करोड़ों रुपए के किराये का नुकसान हो रहा है। यही बंगले यदि सरकार अपने कर्मचारियों और अधिकारियों को आवंटित करती तो बदले में उनसे मकान का किराया भी लिया जाता, लेकिन पत्रकार बंधु ने तो किराया देते हैं और न ही घर खाली करते हैं। खबर में एक सूत्र के हवाले से बताया गया है कि ऐसे घरों पर लगभग १६ करोड़ रुपए किराया बकाया है।
खास बात यह है कि इन घरों में रहने वाले बड़े पत्रकारों का वेतन और पद दोनों ही बड़ा है। द हिंदू के मुताबिक सरकारी घरों में कब्जा किए हुए पत्रकार लोग पीटीआई, यूएनआई, स्टार न्यूज, जी न्यूज, ईटीवी, इंडियन एक्सप्रेस (पूर्व पत्रकार), हिंदुस्तान टाइम्स, द स्टेट्समैन, हितवाद, इंडिया टीवी, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता, नईदुनिया, स्वदेश, लोकमत, देशबंधु, नवभारत टाइम्स, इकोनोमिक टाइम्स जैसे शीर्ष संस्थानों में कार्यरत हैं। इनके अलावा छुटभैया किस्म के अखबार, मैगजीन और पोर्टल चलाने वालों ने भी सरकारी घरों पर कब्जा कर रखा है।
मध्यप्रदेश सरकार यह कारनामा आज से नहीं लगभग 20 वर्ष से कर रही है। यह हालात तब हैं, जबकि 2006 में ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी घर पत्रकारों को न आवंटित करने के आदेश दे दिए थे। राज्य सरकार के कर्मचारियों को रहने के लिए घर नहीं मिल रहे हैं। 20-20 साल की वेटिंग चल रही है। कई अधिकारी/कर्मचारी को तो घर की आस लिए हुए ही रिटायर हो गए। कुछ ने हिम्मत करके जैसे-तैसे अपने घर बना लिए या फिर किराये के मकान में ही जिंदगी काट दी। ऐसे हालातों के बीच शहर के पॉश इलाकों अरेरा कॉलोनी, चार इमली, शिवाजी नगर, 45 बंगले और 74 बंगले के घरों पर पत्रकार भाईयों का कब्जा है।
सभी जानते हैं कि राज्य सरकारें पत्रकारों और मीडिया हाउसेस को मैनेज करने के लिए घर, जमीन आवंटित करने जैसे कृत्य करती रहती हैं। एक सच यह भी है कि सरकारी घर का मजा उन्हीं पत्रकारों को मिलता है, जो प्रभावशाली होते हैं और सत्ता के गलियारों में जिनकी पूछ होती है या फिर वो देश के बड़े मीडिया संस्थान के राज्य प्रतिनिधि हों।
इसी तरह से जमीनों के बंदरबाट की एक खबर हिंदू अखबार ने अक्टूबर 2009 में भी प्रकाशित की थी। अगर आपको ऐसे पत्रकारों के नामों की फेहरिस्त देखना हो तो मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्कविभाग की वेबसाइट एमपीइंफो डॉट ओआरजी पर उपलब्ध है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें