बुधवार, 15 मई 2013

पीने लायक नहीं रहा भोपाल के बड़े ताल का पानी


राजधानी में चारों ओर प्रदूषण ही प्रदूषण, ध्वनि और वायु प्रदूषण मानक स्तर के पार

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की शान-बान बड़ा तालाब इतना प्रदूषित हो चुका है कि इसका पानी पीने तो छाडि़ए कई जगहों पर नहाने के काम का भी नहीं रहा है। बात चाहे वायु की हो या ध्वनि की शहर में चारों ओर प्रदूषण ही प्रदूषण है। वाहन तय मानकों से ज्यादा प्रदूषण फैला रहे हैं। यह खुलासा प्रदूषण मंडल की रिपोर्ट से हुआ है।

विधानसभा में विश्वास सारंग के सवाल के लिखित जवाब में पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया ने बताया कि शहर में निर्माण कार्यों, नई सड़कों, वाहनों की बढ़ती संख्या, सीवेज का उपचारित न होना, बसाहट की गहनता और उद्योगों के मानकों से अधिक उत्सर्जन की वजह से शहर में प्रदूषण बढ़ा है। शहर के जल स्रोतों में एक भी ऐसा नहीं है जिसका पानी बिना उपचार के उपयोग में लाया जा सके। आईएस 2296-1982 के आधार पर जो सूची बनाई गई है उसमें 2011-12 में बड़ा तालाब का पानी खानूगांव के पास और सीहोर नाका, बैरागढ़ के पास ऐसा पाया गया था जिसका उपयोग पेयजल स्रोत रोगाणुरहित गैर-पारंपरिक उपचार के बिना किया जा सकता था।

वहीं मौजूदा वित्तीय वर्ष में बड़ा तालाब कमला पार्क जल प्रदाय केंद्र के पास, याट क्लब जल प्रदाय केंद्र के पास, करबला जल प्रदाय केंद्र के पास, खानूगांव के पास, सीहोर नाका के पास, छोटा तालाब कालीघाट के पास स्पिल आउटलेट, शाहपुरा लेक स्पिल आउटलेट, कोलार डेम जलप्रदाय केंद्र के पास, केरवा डेम विश्रामगृृह के पास और हताईखेड़ा डेम विश्रामगृह के पास से नमूने लिए गए। इनमें से एक भी स्थान का पानी ए श्रेणी यानी पेयजल स्रोत्र रोगाणुरहित गैर-पारंपरिक उपचार के बिना का नहीं  पाया गया।

इसी तरह ध्वनि के स्तर का मापन चार स्थानों पर किया गया तो मालूम पड़ा कि सभी जगहों पर ध्वनि प्रदूषण काफी पाया गया। व्यावसायिक क्षेत्र में दिन के समय तय मानक के हिसाब से 50 और रात में 40 डेसीबल ध्वनि का स्तर होना चाहिए। लेकिन कटारे पेट्रोल पंप के पास दिन में 64.1 और रात में 80.7, हमीदिया रोड में दिन में 65.5 और रात में 82.3, ई-5 अरेरा कॉलोनी में दिन में 60.6 और अधिकतम 79.9 मापा गया है।

वायु प्रदूषण में स्थिति 
वायु प्रदूषण के मामले में शहर की स्थिति कमोबेश बेहतर है। मंडल ने 1 हजार 763 डीजल और पेट्रोल वाहनों की जांच की। इसमें डीजल के 19 और पेट्रोल के 85 वाहनों से प्रदूषण फैलना पाया गया। जनवरी 2013 में 80 वाहनों के खिलाफ मोटर व्हीकल एक्ट के तहत कार्रवाई की गई है। साथ ही प्रदूषण की रोकथाम के लिए बोर्ड ने नगर निगम के खिलाफ दो न्यायालयीन प्रकरण दायर किए। भेल की एक इकाई को बंद करने के निर्देश देने के साथ 50 लाख की बैंक गारंटी लेकर समयबद्घ कार्ययोजना के अंतर्गत काम करने के लिए बाध्य किया गया।

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

सरकारी आशियानों पर पत्रकारों का कब्ज़ा

देश के नामी कॉरपोरेट मीडिया घरानों के भोपाल प्रतिनिधियों की हालत का खुलासा देश के ही एक नामी अखबार द हिंदू ने किया है। अखबार ने अपने सूत्रों के हवाले से जो खबर 9 जनवरी 2012 को प्रकाशित की, वह वाकई हिम्मत की बात है। खबर में बताया गया है कि मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में रह रहे 187 वरिष्ठ पत्रकारों ने सरकारी बंगलों पर अवैध रूप से कब्जा जमा रखा है। इनमें से कई पत्रकार तो ऐसे भी हैं, जो वर्षों पहले अपने संस्थान से रिटायर हो चुके हैं पर बंगला मोह अभी तक नहीं त्यागा है।

ऐसे पत्रकारों की वजह से राज्य सरकार को करोड़ों रुपए के किराये का नुकसान हो रहा है। यही बंगले यदि सरकार अपने कर्मचारियों और अधिकारियों को आवंटित करती तो बदले में उनसे मकान का किराया भी लिया जाता, लेकिन पत्रकार बंधु ने तो किराया देते हैं और न ही घर खाली करते हैं। खबर में एक सूत्र के हवाले से बताया गया है कि ऐसे घरों पर लगभग १६ करोड़ रुपए किराया बकाया है।

खास बात यह है कि इन घरों में रहने वाले बड़े पत्रकारों का वेतन और पद दोनों ही बड़ा है। द हिंदू के मुताबिक सरकारी घरों में कब्जा किए हुए पत्रकार लोग पीटीआई, यूएनआई, स्टार न्यूज, जी न्यूज, ईटीवी, इंडियन एक्सप्रेस (पूर्व पत्रकार), हिंदुस्तान टाइम्स, द स्टेट्समैन, हितवाद, इंडिया टीवी, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता, नईदुनिया, स्वदेश, लोकमत, देशबंधु, नवभारत टाइम्स, इकोनोमिक टाइम्स जैसे शीर्ष संस्थानों में कार्यरत हैं। इनके अलावा छुटभैया किस्म के अखबार, मैगजीन और पोर्टल चलाने वालों ने भी सरकारी घरों पर कब्जा कर रखा है।

मध्यप्रदेश सरकार यह कारनामा आज से नहीं लगभग 20 वर्ष से कर रही है। यह हालात तब हैं, जबकि 2006 में ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी घर पत्रकारों को न आवंटित करने के आदेश दे दिए थे। राज्य सरकार के कर्मचारियों को रहने के लिए घर नहीं मिल रहे हैं। 20-20 साल की वेटिंग चल रही है। कई अधिकारी/कर्मचारी को तो घर की आस लिए हुए ही रिटायर हो गए। कुछ ने हिम्मत करके जैसे-तैसे अपने घर बना लिए या फिर किराये के मकान में ही जिंदगी काट दी। ऐसे हालातों के बीच शहर के पॉश इलाकों अरेरा कॉलोनी, चार इमली, शिवाजी नगर, 45 बंगले और 74 बंगले के घरों पर पत्रकार भाईयों का कब्जा है।

सभी जानते हैं कि राज्य सरकारें पत्रकारों और मीडिया हाउसेस को मैनेज करने के लिए घर, जमीन आवंटित करने जैसे कृत्य करती रहती हैं। एक सच यह भी है कि सरकारी घर का मजा उन्हीं पत्रकारों को मिलता है, जो प्रभावशाली होते हैं और सत्ता के गलियारों में जिनकी पूछ होती है या फिर वो देश के बड़े मीडिया संस्थान के राज्य प्रतिनिधि हों।

इसी तरह से जमीनों के बंदरबाट की एक खबर हिंदू अखबार ने अक्टूबर 2009 में भी प्रकाशित की थी। अगर आपको ऐसे पत्रकारों के नामों की फेहरिस्त देखना हो तो मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्कविभाग की वेबसाइट एमपीइंफो डॉट ओआरजी पर उपलब्ध है।

बुधवार, 18 मई 2011

चलती का नाम गाड़ी

भोपाल रियासत की पहली कार। नवाब बेगम सवारी के लिए तैयार हैं।

सेंट्रल लाइब्रेरी

सेंट्रल लाइब्रेरी, भोपाल। इसे बरकतउल्ला भोपाली भवन के नाम से भी जाना जाता है।

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

नवाबी अदालत

नवाबी सल्तनत में भोपाल की हाईकोर्ट, जो अब सरकारी दफ्तर बन चुका है। बैरागढ़ और लालघाटी जाने वाली रोड पर कोहे फिजा के सामने स्थित है।

जहनुमां पैलेस

भोपाल की नवाब बेगम का पैलेस जो आज शहर का एक प्रतिष्ठित होटल है। श्यामला हिल्स पर बना हुआ यह पैलेस अपनी अलग ही शान रखता है।

सोमवार, 21 जून 2010

महिलाओं के लिए खास अस्पताल

सुल्तानिया जनाना अस्पताल। महिलाओं के लिए बनाया गया विशेष अस्पताल। हालांकि आज यह अपनी उस भव्यता को खो चुका है।