भोपाल गैस त्रासदी को हुए 26 साल बीत चुके हैं। लेकिन हमारे देश की “शानदार व्यवस्थाओं” का फायदा उठाते हुए भोपाल गैस हादसे के जिम्मेदार लोग आजाद घूम रहे हैं। 26 वर्षों से मामला जिला अदालत में ही चल रहा था और फैसला आया भी तो…..।
खैर, अगर बात करें, इस हादसे के जिम्मेदार लोगों की तो इसके लिए सिर्फ वारेन एंडरसन अकेला ही जिम्मेदार नहीं है। इसमें वो सब बराबर के जिम्मेदार हैं, जो यूनियन कार्बाइड की स्थापना से लेकर गिरफ्तार किए जा चुके वारेन एंडरसन को छुड़वाने के लिए जिम्मेदार थे।
भोपाल गैस त्रासदी के बाद के पूरे घटनाक्रम पर नजर रखने वालों को अच्छी तरह से मालूम होगा कि आखिर यूनियन कार्बाइड कारखाने को शहर के सटे हुए इलाके में कारखाना लगाने की इजाजत किसने दी थी। इतना ही नहीं, यह जानते हुए भी कि यूका में जहरीले कीटनाशकों का उत्पादन किया जा रहा है, क्यों उसके आसपास के इलाकों से लोगों को किसी दूसरे स्थान पर विस्थापित नहीं किया गया।
यूका ने भारत सरकार को बतौर मुआवजा जो रकम दी थी, उसका उचित उपयोग क्यों नहीं किया गया। कहने के लिए अस्पतालों और शोध केंद्रों का निर्माण तो कर दिया गया, लेकिन आज तक वहां इस बात का पता नहीं लगाया जा सका कि आखिर गैस पीडितों का इलाज कैसे किया जाए।
देश के कानून मंत्री ने माना कि इंसाफ मे देरी हुई है, लेकिन क्या सिर्फ इससे उन लोगों के दर्द पर मरहम लग जाएगा जिनके अपनों को उस काली रात ने निगल लिया था। 1982 में ही जब यह पता चल चुका था कि यूका कारखाने में 30 खामियां हैं, तब भी कोई कार्रवाई न करने की वजह क्या थी।
आखिर क्यों कभी भी इस मुद्दे को भाजपा और कांग्रेस ने गंभीरता से नहीं लिया। क्यों राजनेता आए दिन विरोधाभासी बयान देते रहते हैं। वोट मांगने के लिए तो नेता इसे मुद्दा बना लेते हैं, लेकिन बाद में बाबूलाल गौर और जयराम रमेश जैसे जिम्मेदार राजनेता कहते हैं कि यूका परिसर एकदम स्वच्छ है।
तो फिर क्या माननीय नेता यह बता सकते हैं कि किस बीमारी की वजह से वहां रहने वाले लोगों की स्वास्थ्य समस्याएं बाकी लोगों से अलग हैं। 25 हजार लोगों की मौत के बदले सिर्फ दो साल की सजा, एक-एक लाख का जुर्माना और तुरंत जमानत।
ईश्वर हमारे नेताओं को सदबुद्धि दे तथा उस काली रात को काल के गाल में समाए लोगों की आत्मा को शांति दे।
निश्चय ही यह बेहद दुखद और शर्मनाक फैसला है भारतीय न्यायिक इतिहास में |
जवाब देंहटाएंhttp://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6472958.html
जवाब देंहटाएंक्या इतना काफ़ी है? बिल्कुल भी नहीं..... २५ हज़ार मौतें और दो साल...
इसे न्याय कहें या अन्याय, समझ नहीं आ रहा है
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