घोर अफसोस और शर्म की बात है कि भोपाल गैस त्रासदी को “सिस्टम” की कारसतानी बताकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की जा रही है। जी हां दोस्तों, कांग्रेस पार्टी का कहना है कि एंडरसन के बच निकलने में न तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जिम्मेदार थे और ही मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री। जिम्मेदार तो सिस्टम था।
अब जरा इन स्वयंभू समझदार और जनता को मूर्ख समझने वाले नेताओं से यह भी पूछा जाए कि आखिर वो ‘सिस्टम’ का क्या मतलब समझते हैं। जहां तक हमारी गैर राजनीतिक बुद्धि समझ पा रही है, सरकार ही सिस्टम है और उसे चलाती है। तो फिर यह कौन सा सिस्टम था, जिसने एंडरसन को भारत छोड़ने दिया और तो और सिस्टम का ही इसी हिस्सा लोगों को इसकी खबर लगने में 26 साल लग गए।
एक कहावत मैंने सुनी थी कि “12 साल में घूरे के दिन भी फिर जाते हैं।“ लेकिन कमबख्त नेतागिरी ने तो इस कहावत को भी झुठला दिया है। यूनियन कार्बाइड कारखाना भी वहीं का वहीं है और बाकी जिंदा बचे लोग भी। कारखाने में पड़ा जहरीला कचरा भोपाल की फिजा में जहर घोल रहा है। न तो कोई उसे साफ करने वाला है और न ही कोई उस हादसे के जिम्मेदार लोगों को पकड़ने वाला।
क्या कोतवाल और क्या चोर। सबने मिलकर भोपाल के साथ धोखा किया है। आज जब पोल खुल रही है और जनता सवाल पूछ रही है तो उसे सिस्टम का झुनझुना सुनाया जा रहा है। यदि आप उस समय के जिम्मेदार लोगों के बयानात पर गौर करेंगे तो अपनी हंसी और गुस्से दोनों को ही रोक नहीं पाएंगे। लेकिन इससे पहले जरा इस पर गौर करिए और बताइएगा कि क्या ऐसा संभव है।
मान लीजिए, 26/11 को हुए मुंबई हमले एकमात्र जीवित बचा आरोपी अजमल आमिर कसाब यह कहे कि उसे एक बार उसके घर जाने दिया जाए। वो परिजनों से मिलकर जल्द ही वापस आए जाएगा। तो क्या हमारा सिस्टम ऐसा करेगा। शायद नहीं। तो फिर एंडरसन के मामले में ऐसा कैसे होने दिया गया। क्योंकि एंडरसन को इसी मूर्खतापूर्ण वायदे के आधार पर जाने दिया गया था। हालांकि यह बात गले के नीचे उतर नहीं पा रही है।
तत्कालीन पुलिस अधीक्षक और बाद में डीजीपी पद से रिटायर हुए स्वराज पुरी को दी जा रही सभी सुविधाएं इसलिए हटा ली गई हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी सरकारी कार से एंडरसन को स्टेट हैंगर तक पहुंचाया था। अब अगर कार से स्टेट हैंगर तक छोड़ना इतना बड़ा गुनाह है तो फिर राज्य सरकार के शासकीय विमान का पायलट भी दोषी रहा होगा, जिसने एंडरसन को दिल्ली तक पहुंचाया था।
तो क्या वो “लोग” दोषी नहीं हैं, जिन्होंने इनको “सिस्टम” के नाम पर आदेश दिया हो। उठो भोपाल अब वक्त आ गया है। धोखेबाजों को सबक सिखाने का और अपना हक मांगने का। वरना किसी दिन सिस्टम की आड़ में राहत राशि को भी हजम कर जाएंगे।
उठो भोपाल, दलालों को कुचल दो और अपना हक छीन लो।
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